शहर करे कभी मेहरबानी ऐसे
महबूब छुपा ले आगोश मे जैसे
कभी दिखाए अपनी बेरुख़ी ऐसी
रात से रुठे चाँद के जैसी
कभी दिखाए अपनी बेरुख़ी ऐसी
रात से रुठे चाँद के जैसी
शहर के बिखरे बालों से रस्ते
बदन की गुतथियौं में उलझाएं
तो कभी रुह को वापसी की
राहें सब खुद यही सुझाएं
बदन की गुतथियौं में उलझाएं
तो कभी रुह को वापसी की
राहें सब खुद यही सुझाएं
शहर खोल दे कभी बंद ज़ख़्म
नासूर बनाकर उनहें इतराए
तो कभी अपनी उम्र की हर झुररी को
गुरुर के टीके के साथ सजाए
तो कभी अपनी उम्र की हर झुररी को
गुरुर के टीके के साथ सजाए
शहर कभी मसीहाई दिखाए
फिर खुदा का कहर बरसाए
तो कभी अपनी पनाह दे ऐसे
शिकारी चिड़िया पकडे जैसे
तो कभी अपनी पनाह दे ऐसे
शिकारी चिड़िया पकडे जैसे
शहर की कभी यादें ऐसी
सारी मील के पत्थर जैसी
तो कभी अपनी हर एक परत पर
सब रंग नए चढ़ाता जाए
तो कभी अपनी हर एक परत पर
सब रंग नए चढ़ाता जाए
शहर गम कभी छुपा ले अंदर
मन में जैसे गहरा समंदर
तो कभी अपना आप बसाता जाए
खुद से खाली करता जाए
तो कभी अपना आप बसाता जाए
खुद से खाली करता जाए
मेरा शहर कभीबने महबूब मेरा
तो कभी
मेरा महबूब बने मेरा शहर
मेरा महबूब बने मेरा शहर
Shehar kare kabhi meherbani aise
Mehboob chhupa le agosh me jaise
Kabhi dikhaye apni berukhi aisi
Raat se roothe chand ke jaisi
Shehar ke bikhre baalon se raste
Badan ki gutthiyon me uljhayen
To kabhi rooh ko wapasi ki
Raahein sab khud yehi sujhayen
Shehar khol de Kabhi band zakhm
Nasoor banakar unko itraaye
To kabhi apni umar ki har jhurri ko
Guroor ke teeke ke sath sajaye
Shehar kabhi masihayi dikhaye
Phir Khuda ka Qehar barsaye
To kabhi apni panah de aise
Shikari chidiya pakde jaise
Shehar ki kabhi yaadein aisi
Saari meel ke pathar jaisi
To kabhi apni har ek parat par
Sab rang naye chadhata jaye
Shehar gham kabhi chhupale andar
Mann me jaise gehra samandar
To kabhi apna aap aise basata jaaye
Khudse khali karta jaaye
Mera Shehar bane kabhi Mehboob Mera
To Kabhi
Mera Mehboob Bane Mera Shehar :)
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